अपनी बाँहों में जकड़ कर, यूँ तोड़ दो तुम !
कि दर्द जितना भी है अंदर, सब निचोड़ दो तुम ।।
क़तरा-क़तरा कर मोहब्बत की, नदियाँ बहा दो !
और प्रवाह दर्द-ए-दरिया की तरफ़, मोड़ दो तुम ।।
टूट-टूट के गिर जाए, वफ़ा का हर इक टुकडा !
अंदर से इतना चकनाचूर दिल को, तोड़ दो तुम ।।
हर रूआँ से होके गुजरे, तड़प इस ज़ख़्म की !
रूह-ओ-ज़िस्म को इस शिद्दत से, झंझोड़ दो तुम ।।
बड़ा खलल पड़ रहा है, इस शोर से तन्हाई में !
बे-ग़ैरत् धड़कनों की गर्दन, ज़रा मरोड़ दो तुम ।।
इक घुटन सी हो रही है, तेरी क़ुर्बत में जनेजानाँ !
इश्क़ की क़ैद से कर दो रिहा, मुझे छोड़ दो तुम ।।
#चौबेजी
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